राष्ट्रीय भावन के उद्गाता थे प्रसाद

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महाकवि जयशंकर प्रसाद की कविताओं में मूलतः करुणा और प्रेम – ये दो भावनाएं विद्यमान हैं और इसी का प्रसार उनकी समस्त रचनाओं में परिलक्षित होता है। इन दोनों भावनाओं का प्रथम निदर्शन उनके ‘ करुणालय ‘और ‘ ‘ प्रेम पथिक ‘ नामक काव्य संग्रह में हुआ है। जयशंकर प्रसाद की जयंती के उपलक्ष्य में महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह मेमोरियल महाविद्यालय , दरभंगा के हिंदी विभाग की ओर से आज 30 जनवरी 2023 को आयोजित गोष्ठी में डॉ तीर्थनाथ मिश्र ने ये विचार व्यक्त किए। गोष्ठी की अध्यक्षता हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ अमरकांत कुमर ने की। डॉ मिश्र ने कहा कि प्रसाद के साहित्य में बुद्ध की करुणा और कश्मीरी शैव दर्शन की साहित्यिक अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने ‘ कामायनी ‘ में इच्छा, क्रिया और ज्ञान में समन्वय का संदेश देकर व्यापक मानवता की आधारभूमि प्रस्तुत की। द्विवेदी युग की जिस इतिवृत्तात्मकता , नैतिकता और उपदेशात्मकता की प्रतिक्रिया में छायावाद का जन्म हुआ, प्रसाद उसके उन्नायक थे
डॉ सतीश कुमार सिंह ने कहा कि जयशंकर प्रसाद राष्ट्रीय चेतना के उद्गाता थे ।उनकी रचनाओं में तत्कालीन राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन और समाज सुधार हेतु चलाए जा रहे आंदोलनों की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। ‘महाराणा का महत्व’ , ‘पेशोला की प्रतिध्वनि’ , ‘अरी वरुणा की शांत कछार ‘ जैसी कविताओं में उन्होंने इतिहास के गौरवशाली अध्यायों का स्मरण करवाकर हततेज भारतवासियों में राष्ट्रीय भावना और और गौरव बोध को उद्बुद्ध किया तो ‘चंद्रगुप्त’ और ‘स्कंदगुप्त’ नाटक के माध्यम से राष्ट्रीय भावबोध को दृढ़ता से मुखरित किया। ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक में उन्होंने बेमेल विवाह की समस्या उठाकर ध्रुवस्वामिनी के पुनर्विवाह के जरिए नारी सशक्ती करण की दिशा में दृढ़ता से कदम बढ़ाया। प्रसाद का यथार्थ बोध उनकी कहानियों में और भी स्पष्ट ढंग से अभिव्यक्त हुआ है
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ अमरकांत कुमार ने कहा कि जयशंकर प्रसाद मूलतः सौंदर्य बोध और दार्शनिक भावना के कवि हैं। उनके काव्य में व्यक्ति, आत्मा, जीवन, रूप – सब के सौंदर्य का बड़े ही लालित्यपूर्ण और मोहक ढंग से वर्णन हुआ है।उन्होंने कहा कि अपने नाटकों के माध्यम से हिंदी नाटक को प्रसाद ने पारसी थिएटर की संकीर्णताओं से ऊपर उठाया और उसे राष्ट्रीय भावना के उद्बोधन का सशक्त माध्यम बना दिया। डॉ कुमर ने कहा कि प्रसाद और अन्य छायावादी कवियों ने भाव ही नहीं, शिल्प के स्तर पर भी द्विवेदी युगीन काव्य से भिन्न और मौलिक राह बनाई। भाव प्रवण गीतों में छायावादी काव्य का यह वैशिष्ट्य देखा जा सकता है
संगोष्ठी में सम्मानित अतिथि के रूप में मैथिली विभागाध्यक्ष डॉ शांतिनाथ सिंह ठाकुर और उर्दू विभागाध्यक्ष श्रीमती जेबा प्रवीण के अतिरिक्त डॉ कैलाश नाथ मिश्र , डॉ भवनाथ झा , डॉ मीनू कुमारी , छात्राओं में सुशीला कुमारी और पूजा कुमारी आदि उपस्थित थे।